...

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कुछ सवाल शेष हैं अभी
कहां गए वो लोग जिन्हें भारत में
अराजकता और असहिष्णुता
नज़र आती थी
बात बात पर जिनके मुंह से
भारत की बुराई आती थी।
आतंकवाद का धर्म नहीं होता,
जो इन बातों का दम भरते थे
क्यों वो नज़र नहीं आते
जो पत्थर बाजों की हिमायत करते थे
क्यों चुप हैं वो
क्यों दुबके पड़े हैं बिलों में
जो सेकुलर कहलाते थे
सच्चाई उनकी उजागर हुई जबसे
घायल सांप से फुफकार रहे
अपनी झूठी दलीलों से
बेगुनाह खुद को बता रहे?

क्या पता नहीं इतिहास उन्हें
भारत का और अपनी जाति का
विश्वगुरु, सोने की चिड़िया
आर्यावर्त की थाती का?
है ज्ञात उन्हें भी सबकुछ मगर
सच स्वीकार नहीं करते
झूठ का ढोल पीट पीट कर
सच को बोलने नहीं देते।

वेदों का प्राकट्य हुआ जहां
ऋचाएं करती थी क्रीड़ा
आर्यों की पावन उस धरती पर
किसने उतारा था जंगी बेड़ा?

ये सत्य सभी को ज्ञात...