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वर्षा
कल- कल, छल- छल वर्षा का जल
करे धरा का कण, तरल-निर्मल
हो हलधर का श्रम, उद्यम सफल
जल- बिंदु से तरु पात पर ठेस पड़े जो मधुर मधुर,
दादुर, झींगुर करे ध्वनि- निनाद सम प्रखर नुपुर
हुई स्फुटित, प्रफुल्लित प्रकृति सकल
नव मंडल, समीर- अमल अरु शीतल हुआ भूतल
मानो हुई हो सजल किसी काव्यकार की मनोवृत्ति विमल
हो चित्त- स्फुरित, प्लावित करते संकल्प नवल
विरहिणी सम हो रही प्रियतम- वियोग में विकल
ऋतु ग्रीष्म में कुम्हलाई, प्रकृति थी निर्बल निर्जल
हुई प्रियतम से भेंट, प्रफुल्लित हुआ चित्त कोमल
वर्षा से हो उठी उर्वरित, लहलहाई अदिति अखिल
जन- जन को करती प्रेरित, कि सुख दुख प्रभृति,
करते नर जीवन को पूर्णित, सार यही करते पोषित
मेघ- गर्जन, विद्युत- चपल, दे युवा में उत्साह अटल
कहे प्रवृत्ति रखो निश्छल, दे उमंग, तरंग, स्फूर्ति प्रबल
धरणी की तृषा मिटी, मिला जीवों को प्रभु स्नेह विपुल
© metaphor muse twinkle