वर्षा
कल- कल, छल- छल वर्षा का जल
करे धरा का कण, तरल-निर्मल
हो हलधर का श्रम, उद्यम सफल
जल- बिंदु से तरु पात पर ठेस पड़े जो मधुर मधुर,
दादुर, झींगुर करे ध्वनि- निनाद सम प्रखर नुपुर
हुई स्फुटित, प्रफुल्लित प्रकृति सकल
नव मंडल, समीर- अमल अरु शीतल हुआ भूतल
मानो हुई हो सजल किसी काव्यकार की मनोवृत्ति विमल
हो चित्त- स्फुरित,...
करे धरा का कण, तरल-निर्मल
हो हलधर का श्रम, उद्यम सफल
जल- बिंदु से तरु पात पर ठेस पड़े जो मधुर मधुर,
दादुर, झींगुर करे ध्वनि- निनाद सम प्रखर नुपुर
हुई स्फुटित, प्रफुल्लित प्रकृति सकल
नव मंडल, समीर- अमल अरु शीतल हुआ भूतल
मानो हुई हो सजल किसी काव्यकार की मनोवृत्ति विमल
हो चित्त- स्फुरित,...