मेरा अस्तित्व (रंग काला)!
साहिल हूं मैं उस दरिया का,
जहां आज भी उजाला नहीं होता।
मैं अंधकार हूं उस उजाले का,
जहां आज भी उजियारा नहीं होता।१
सम्राट मैं सब रंगो में,
चड़ता ना किसी का प्रकोप है।
कहते मुझे काला सभी,
चलता ना किसी का कोप है।२
गुलाब भी मैं और समुद्र भी मैं,
हर सवेरे के बाद मैं व्याप्त हूं।
कहते मुझे काला सभी,
मैं वो अंधकार हूं।।३
लौ की जलती बाती मैं,
मैं तो अमावस का चिराग हूं।
डरते हैं मुझसे सभी,
मैं वो अंधकार हूं।४
वीरान भूमि का अस्तित्व मैं,
मैं तो इस माटी का आधार हूं,
कंकड़ों सा समझते हैं सभी,
मैं उस तमश का आधार हूं।५
कशिश ए हया का अंजाम मैं,
मैं तो एक अंत के बाद का आगाज हूं।
दूंढते सभी उजाले में मगर,
मैं तो अमावस के साथ हूं।६
गुरूर की आग का साया मैं,
मैं तो साथी अंधेरों का हूं।
कहते मुझे काला सभी,
मैं वो अंधकार हूं।७
सुनाकर मेरा अंधकार मैं,
मेरी रूह की तलाश में हूं।
अजनबी को बेच बैठा सब,
मैं बेचैन उसकी तलाश में हूं।८
पूरा नहीं अधूरा घूमता मैं,
बाहर से हंसता दिखता हूं।
रोते तो सभी हैं इस दुनिया में,
मगर मैं इन अंधेरों के सहारे रोता हूं।९
एक अंत सिरे का पूर्ण विराम मैं,
सुकून की तलाश में रहता हूं।
मेरे अंधेरों की आड़ में मैं,
नाम तमश लिए चमकता हूं।१०
© सुकून