...

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मेरा सफर अभी बाकी है
इस सफर में एक मुसाफिर हूं,मेरा सफर अभी बाकी है
घुट घुट के जी रहा हूं, तानों की सहर में
कुछ अनसुलझी सी मेरी कहानी है
अकेले की सफर में,कुछ उलझन को सुलझा रहथा
तभी बचपन की याद आया
मां की कोक में स्थान तो लिया,लेकिन पापा के अलावा कोई प्यार ना दिया
समय के हिसाब से उमर ढलती गई
इस दुनिया के लिए में एक कलंकित बनती गई
बचपन की खुशियां आपनी आंगन में दफनाई
पापा की इच्छाएं उस चोखट पे छोड़ के आई
जिसको में ना जानते हुए भी उसका हाथ थामा
उसने ही सबके सामने मेरी बोली लगाई
भूखा रहे कर मेरे पापा ने पाई पाई जमा किया था
मेरे खातिर एक ही क्षण सब गवाई
उनके आंखों में मेने हमेशा ही प्यार पाया
चालों भगवान के जैसे पापा तो पाया
मेने मंजिल तक अभी पहंचा नहीं था
मेरा सफर अभी बाकी था
फिर कुछ साल बिता
मेरे बेटे के रूप में पापा का पाया
मेरा सबकुछ समर्पण करके उसको सामाथ्य बनाया
कुछ दिन उसने ही मुझे घरसे बाहर का रास्ता दिखाया
जीवन भर सूर्य के जैसे तपती रही
लेकिन अपनी दर्द किसी को ना जताई
इस सफर में, में एक मुसाफिर हूं
मुझे मंजिल तक जाना है
केसे pahanchu मंजिल तक
मेरे राह में बहत कांटे है
इतनी ताकत नहीं बचा मेरे शरीर पर
मेरे पैरो में भी हजारों छाले है
मुझे जाना है अपनी मंजिल तक
मेरा सफर अभी बाकी है
मेरा सफर अभी बाकी है
© _DILLIP KUMAR