...

19 views

अगर इश्क मेरा गुनाह है , तो
अगर इश्क मेरा गुनाह है तो
मुल्जिम करार दो मुझे
तो फिर देर किस बात की
आओ मार दो मुझे

मेरे गले में पड़ी रस्सी मेरी गवाह बनेगी
आंखो पर डालकर कपड़ा सूली उतार दो मुझे

मैने तो वो भी सह लिया के मेरा महबूब है बेवफा
अब चाहें एक नही सितम कई हजार दो मुझे

तुम्हे मुबारक हो गुलशन की फिजाएं महकती हुई
ठिकाना देना हो तो उजड़ी कोई दयार दो मुझे

यूं कब तक लिखता रहेगा "दीप" आलम ए गम में
मेरा अब दम घूट रहा है कोई इतवार दो मुझे

अगर इश्क मेरा गुनाह है तो
मुल्जिम करार दो मुझे
तो फिर देर किस बात की
आओ मार दो मुझे

© शायर मिजाज