मध्यमवर्गीय बाप
ज़िम्मेदारियों का बोझ इतना है कि
खुदकी खुशियों को भूल गए
बच्चों की खुशियों की खातिर
खुद की जरूरतों को भूल गए
हंसते है जब बच्चा उनका हंसता है
देख कर चेहरा बच्चों का मन उनका खिलखिला उठता है
पर जब बच्चा हो परेशानी में
सबसे पहले उस बाप का दिल रो पड़ता है
धूप हो या बारिश हो
कड़ी मेहनत वो करता है
खुद जैसी ज़िन्दगी न हो उनकी भी
उनके बेहतर भविष्य के लिए हमेशा प्रयास करता है
जानता है कोई मदद नही करेगा उसकी
इसलिए खुद ही मेहनत करता है
कभी दुख न मिले उसके बच्चे को
इसलिए बुढ़ापे तक वो मध्यमवर्गीय बाप कर्म करता है।
© Bhanu
खुदकी खुशियों को भूल गए
बच्चों की खुशियों की खातिर
खुद की जरूरतों को भूल गए
हंसते है जब बच्चा उनका हंसता है
देख कर चेहरा बच्चों का मन उनका खिलखिला उठता है
पर जब बच्चा हो परेशानी में
सबसे पहले उस बाप का दिल रो पड़ता है
धूप हो या बारिश हो
कड़ी मेहनत वो करता है
खुद जैसी ज़िन्दगी न हो उनकी भी
उनके बेहतर भविष्य के लिए हमेशा प्रयास करता है
जानता है कोई मदद नही करेगा उसकी
इसलिए खुद ही मेहनत करता है
कभी दुख न मिले उसके बच्चे को
इसलिए बुढ़ापे तक वो मध्यमवर्गीय बाप कर्म करता है।
© Bhanu