...

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बाज़ार
घरों से निकल कर, शहरो मैं आकर
शोहरते तलाश करते है, ज़रा वक्त लगाकर।
किसी से पूछ कर, किसी को बताकर
जी हज़ूरी करते है सर झुका कर।
हौसला भी रखना, उम्मीद भी रखना
यकीन भी दिलाना, ईमान भी बचाना।
लगे जो देखने बड़े इतरा कर,
ज़रा समझदार खुद को बताकर।
बातो को सुनकर, बातो मै आकर,
चला न जाए कोई चूना लगाकर।
ज़रा संभल कर, थपक-थपक कर
कदम बड़ाना, नज़र बचाना।
खुद से पूछना, खुद को बताना
न कोई वहम, न कोई बहाना।
चलते भी रहना, चलना भी सिखाना,
ज़मीन मैं रहकर, आसमान की कहकर।
मंज़िल पे जाना, दूसरे को लेकर।
© ALBAB QUDDUSI POET