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राम जैसा आचरण
राम जैसा आचरण

चाहे नारी अहिल्या हो शबरी हो या
राम ने मान रख्खा था सम्मान कर,
हो निषाद गुहा या विभीषण ऋषि
राम ने था बिठाया स्वयं आसना पर।
राम ने जो दिखाया उसी पर चलो,
राम न बन सको आचरण ही करो।।..........

राम संकल्प हैं राम पूरक भी हैं,
राम कण कण विराजे वो सूरत भी हैं।
राम अनिर्वचन राम अनुरूप है,
राम ही हैं प्रजा राम ही भूप हैं।
त्यागा सम्राज्य एक कथन मात्र से,
बात पितु मात की तुम भी सिर पर धरो.........
राम न बन सको..........

राम भोक्ता भी हैं राम भोग भी हैं,
जो लगा दे लगन ऐसे रोग भी हैं।
राम प्रेम भी हैं राम पीड़ा भी हैं,
हो रहा जो जगत में वो क्रीड़ा भी हैं।
भाव में राम ने बात विटपों से की,
तुम सुखद भाव से सबको देखा करो।।.............

राम कर्ता भी हैं औ अकर्ता भी हैं,
इस चराचार जगत के वो भर्ता भी हैं।
राम एक शब्द है राम पर्याय भी,
मन को दे सान्त्वना वो सुखद राय भी।
राम ने है सिखाया सभी एक हैं,
तुम भी छोटा बड़ा सबका आदर करो।।......
राम न बन सको आचरण ही करो।।...........
© अरुण कुमार शुक्ल