...

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नई दौर की मोहब्बत
कोई अपना होकर एहसास पराया सा दे जाता है
पराया कोई फिर अच्छा लगने लगता है,
दिल देते है अमानत के तौर पर , सहेज नही पाते
दिल्लगी लगाने फिर मन कही और चला जाता है,
सफर हमसफर की बातें दोनो ही झूठ है
अंधेरे में तो साथ खड़ा नजर नहीं आता है,
न रास्ते नजर आते है , ना साथी नजर आता है
ये हाथ किसी और के हाथ भी चले जाए तो गुनाह नजर नही आता है,
कोई कसूर नज़र नहीं आता है बेवफाई में ,
नई दौर की मोहब्बत इसे नाम दिया जाता हैं,
तौफे में गम देते हैं अब यहां लोग गुलाब की तरह
खुशियां कांटों सा चुभन दे जाता हैं,
© shubh