...

6 views

रोज़ रोज़
रोज़-रोज़ मेरे सामने प्याले उठाते हो,
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
कभी अपनी थकान तो कभी चिंताओं का वास्ता देकर मुझे, मेहनतकश का हक है पीना यह जताते हो ।
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
अपने काम की महिमामंडन में, तुम मेरी थकान, मेरी उम्मीद हर रोज नजरअंदाज कर जाते हो।
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।
एक प्याले के मोह में तुमको दुनिया बैरी लगती है,
जो रुकने को कह दे उससे दुश्मनी गहरी लगती है।
हर सुबह का एक ही वादा,
कल हो गई थी थोड़ी ज्यादा,अब से ख्याल करूंगा ।अपनी लिमिट ना पार करूंगा।
ढलती शाम के साथ ही सारे वादे भूल जाते हो,
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो।

Dr. Priyanka