...

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उम्मीद
सांसों के इस संघर्ष में उम्मीदें ही साथ हैं,
इन्सानियत ने तो कबके घुटने टेक दिये,
सरेआम काले बाजारों में बिक रही हैं वो सांसे,
जो कभी घर के आंगनो में बिखरी थी,
सड़को पे बैठा है आज वो,
जिसने बीती रात महल बनाए थे,
ठगा सा सरेआम रो रहा है आज...