...

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मरहूम ख्वाब
राबता-ए-उलफत के सारे पल,,हमारे दरमियां से मरहूम हो गए,
उनके फन्न-ए-मक्कारी के सारे दांव दिल को मालूम हो गए,,,

कुर्बत-ए-सोहबत-ए-यार,,मे दूरी का अंदेशा था हमें,,
वफा की बात पर,,यार के किरदार से वफा के अक्स मादूम हो गए,

बुझ गए सारे जुगनू-ओ-चराग,,हमारे मोहब्बत-ए-शहर के,,
अंजूम-ओ-कहकशां के चमकने के सारे मफ्हूम खो गए,,

जाँ के जानिब से,,शब से ज़्यादा स्याह,,जिस्त की रंगत हूई है,,
वादो-औ-इरादो के गुलशन,,,अब कांटो के हुजूम हो गए,

फरेब-ए-जल्वा देखा यार का,जिन्दगी उस नशे से मदहोश है,,
चश्म-ए-हकिकत से देखा तो,,सारे ख्वाब मजलुम हो गए,,
© kuhoo