ताशिर
शिकवा थी ज़माने को हमसे
की हम उनके रंग में ढलते नहीं,
तुम ग़र नदी की हो धार
मैं सागर का खारा पानी ही सही,
धारण किया ख़ुद में...
की हम उनके रंग में ढलते नहीं,
तुम ग़र नदी की हो धार
मैं सागर का खारा पानी ही सही,
धारण किया ख़ुद में...