में फिर मुस्कुरा दिया।।।
खुद पोछ आत्म अश्रु को, में मोह लिबाज़ में मुस्कुरा दिया।
ना पता कितना जला अंतर मन में खुद के ही, अंत्त: दर्द को अपना आदि बना फिर मुस्कुरा दिया।।
हर रात को याद कर सारे दिन की बेपरवाही, कल नई सुबह के इंतजार में फिर मुस्कुरा दिया।।
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ना पता कितना जला अंतर मन में खुद के ही, अंत्त: दर्द को अपना आदि बना फिर मुस्कुरा दिया।।
हर रात को याद कर सारे दिन की बेपरवाही, कल नई सुबह के इंतजार में फिर मुस्कुरा दिया।।
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