...

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सर्द रात
दिसम्बर की सर्द रात
और तन्हा बैठे हैं हम रजाई में
किसी की आती - जाती
वो प्यारी सी यादें
राहत देती है इस तन्हाई में
बाहर दिखता घना कोहरा
और मन पर है
उस अजनबी की यादों का पहरा
पतंगों का मौसम है
मन कहां लगता किसी का पढ़ाई में
दिसंबर की सर्द रात
और तन्हा बैठे हैं हम रजाई में
दुनियां के शोरगुल से अलग
मन पाता है सुकूं
बस रातों की इस तन्हाई में
पसन्द नहीं थे उन्हें आंसू हमारे
बस इस एक बात से
न बहते है ये नैन उनकी जुदाई में
दिसम्बर की सर्द रात
और तन्हा बैठे हैं हम रजाई में
अंजली