vida ki raah per
चलते चलते थक गए हैं अब पांव हमारे
जीवन को आराम का एक इतवार चाहिए।
कहां रहती है ज़मीं पर शाइस्तगी किसी की,
हर किसी को यहां चने का छाड़ चाहिए।
अपना अपना कह कर भी घोपता खंजर हैं हर कोई,
इस...
जीवन को आराम का एक इतवार चाहिए।
कहां रहती है ज़मीं पर शाइस्तगी किसी की,
हर किसी को यहां चने का छाड़ चाहिए।
अपना अपना कह कर भी घोपता खंजर हैं हर कोई,
इस...