...

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मेरा अधिकार
"पथ सत्य,अहिंसा का मुझको तब तक ही स्वीकार,
आत्म सम्मान की यहाँ जब तक होती नहीं हार।
ले बंदूक सीमा पर अगर न खड़े रहे जवान,
फ़सल समृद्धि की खेतों में कैसे फिर बोये किसान।
लिये इरादे नापाक बढेगे क़दम जो भी इस ओर,
सर कलम कर देंगे उनका रखने माँ का मान।
लगा घात दुश्मन जब लगे देने चुनौती बार बार,
कर उदघोष संग्राम नियत कहता गीता का सार।


बातें होती जब देश के आन बान और शान की,
बाज़ी लगती देखी तब सीमा पर वीरों के जान की।
पथ पर सत्य अहिंसा के कैसे फिर चल पाऊंगी,
जरूरत आन पड़ी हो जब सर्वस्व बलिदान की।
मद में शक्ति के हो चूर करे शत्रु अगर प्रहार,
शांति हित शस्त्र उठाने का तब सबको अधिकार।"
'ऋcha'
(अनुभूतिदिलसे)


© anubhootidilse