कैसे समाज में जी रहे है हम....
हत रे कैसे समाज में जी रहे हूं हम
जहां जन्मोत्सव पर लाखों खर्च हो जाते हैं
न जाने कितनी बधाइयां दुआ और आशीष
बड़े बुजुर्गों से मिल जाती हैं हमे
वही एक समय उन बुजुर्गों के
मरने की दुआएं मांगने लगते...
जहां जन्मोत्सव पर लाखों खर्च हो जाते हैं
न जाने कितनी बधाइयां दुआ और आशीष
बड़े बुजुर्गों से मिल जाती हैं हमे
वही एक समय उन बुजुर्गों के
मरने की दुआएं मांगने लगते...