ना आया
ना ग़ुरूर हो अपने पर इसलिए ख़ुद को बुरा बनाया,
इंसान बने रहने का हुनर इससे ज़्यादा हमें ना आया.
ज़माना लाख कहे नेक हमें पर अपना सच मालूम है,
सब्र नेकी में और बद से मुहतात रहना हमें ना आया.
ख़ुद को ही समझते रहे अकील हम दुनिया की तरह,
सोचे जो दुनिया की तरह, कभी फ़ाज़िल उसे ना पाया.
डरते हैं अब...
इंसान बने रहने का हुनर इससे ज़्यादा हमें ना आया.
ज़माना लाख कहे नेक हमें पर अपना सच मालूम है,
सब्र नेकी में और बद से मुहतात रहना हमें ना आया.
ख़ुद को ही समझते रहे अकील हम दुनिया की तरह,
सोचे जो दुनिया की तरह, कभी फ़ाज़िल उसे ना पाया.
डरते हैं अब...