...

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तुम्हारे लिए।

तुम्हारे लिए।

कभी इंतहा नजरों में भरकर एक हरक़त गुस्ताख़ी माफ़ पैगाम है।
कभी मेरी भी ग़रीबी नवाजें कोई, जहांमें चाहत आगाह है।
और कुछ तुटकर बिखरी नज्में आगाज़ है।

बस एक नज़र ही उन...