अनसुलझे राज़ मोहब्बत के
कभी तुम अपनों से भी अपने हो,
कभी तुम गै़रों से भी बेगाने हो,
मेरी ज़िंदगी हो, मेरा सच हो या फिर यूँ ही कोई अफ़साने हो।
कभी लगता है कि दिल में रह कर भी तुम्हारे दिल तक पहुँच न पाई हूँ,
वो एक पल हो...
कभी तुम गै़रों से भी बेगाने हो,
मेरी ज़िंदगी हो, मेरा सच हो या फिर यूँ ही कोई अफ़साने हो।
कभी लगता है कि दिल में रह कर भी तुम्हारे दिल तक पहुँच न पाई हूँ,
वो एक पल हो...