घर की छाव
#घरवापसी
ज़ब राहें थकान से बोझिल हो चली,
और सपनो की दुनिया बेमानी लगने लगी।
हर मोड़ पर,सिर्फ एक ही चाह जगी,
वापस चलो,जहां दिल सुकून से बसा था कभी
ओ गालिया,ओ आंगन,ओ पेड़ों की छांव,
जहां हर सुबह थी एक नई उम्मीद की तरह।
मां की पुकार,बापू की मुस्कान,
इन यादों में बसता है सारा जहांन।
जीवन के दौङ ने भटका दिया दूर,
पर दिल ने हमेशा रखा उस घर का नूर।
जहां हर दर्द का मरहम, हर गम का हल था,
ओ घर, जो सच्ची खुशियों का महल था।
अब लौट रहा हूं उन लम्हो की ओर,
जहां हर कदम पर था अपनों का प्यार भरपूर।
घर की मिट्टी, ओ आंगन का सुकून,
यही मिलती है, जिंदगी की असली धुन।
ज़ब राहें थकान से बोझिल हो चली,
और सपनो की दुनिया बेमानी लगने लगी।
हर मोड़ पर,सिर्फ एक ही चाह जगी,
वापस चलो,जहां दिल सुकून से बसा था कभी
ओ गालिया,ओ आंगन,ओ पेड़ों की छांव,
जहां हर सुबह थी एक नई उम्मीद की तरह।
मां की पुकार,बापू की मुस्कान,
इन यादों में बसता है सारा जहांन।
जीवन के दौङ ने भटका दिया दूर,
पर दिल ने हमेशा रखा उस घर का नूर।
जहां हर दर्द का मरहम, हर गम का हल था,
ओ घर, जो सच्ची खुशियों का महल था।
अब लौट रहा हूं उन लम्हो की ओर,
जहां हर कदम पर था अपनों का प्यार भरपूर।
घर की मिट्टी, ओ आंगन का सुकून,
यही मिलती है, जिंदगी की असली धुन।