अनचाही बेटी।
बचपन से ही वो,जाने कितने भेदभाव
झेलती है।
वो, अपने भाई के टूटे खिलौनो से
खेलती है।
सारे सपने बिखेर कर जो ,अपनो के
सपने सजाती है।
फिर क्यू? सामाज मे वो खुद को अकेला
पाती...
झेलती है।
वो, अपने भाई के टूटे खिलौनो से
खेलती है।
सारे सपने बिखेर कर जो ,अपनो के
सपने सजाती है।
फिर क्यू? सामाज मे वो खुद को अकेला
पाती...