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वक़्त की बदलती प्रकृति
#वक़्त की बदलती प्रकृति

वक़्त लगता है जैसे बहता पानी
न पकड़ सकते न भर सकते
कीमत समझ लो तो संग बहते जाओ
न समझो तो थम सी जाए ज़िंदगी
जैसे हार सी गई ज़िंदगी
वक़्त वो खट्टे मीठे स्वाद जैसे
कभी खुशियों की मिठास लगती
कभी ग़मों सी खटास ज़िंदगी
जान लो वक़्त की प्रकृति
अपना लो हर स्वाद उसका
न अपनाओ तो कड़वाहट लगे ज़िंदगी
वक़्त होता उड़ती रेत जैसा
पल भर न टिकता हाथ में
यूँ फिसलता जाता बात ही बात में
चाहो तो खून पसीने की दीवार बनाओ
चाहो तो सुंदर उज्जवल भविष्य बनाओ
पर वक़्त के साथ चलना सीखो
वक़्त बर्बाद होने से बचाना सीखो।


© hemasinha

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