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ग़ज़ल
राधा राणा की कलम से...✍️

अपनी परछाई से मिलना हो गया।
दर्द , तन्हाई से मिलना हो गया।

झूठ जब उछला ख़बर बनकर बड़ी,
एक सच्चाई से मिलना हो गया।

ख़्वाब जब पूरे नहीं हो पाए तो,
इनकी ऊंचाई से मिलना हो गया।

वक्त पर परखा गया जब रिश्तों को,
सबकी अच्छाई से मिलना हो गया।

ज़िंदगी जीना नहीं इतना सरल,
इसकी कठिनाई से मिलना हो गया।
2122 2122 212