जिस्म पर ना़ज
यही वक्त अंतिम यही वक्त भारी।
अंधेरी कबर अब लगती है प्यारी?
बड़े नाज़ से जिसे हमने सजाया।
वही देख लो है नहीं अब हमारी।
नशा था इसे की बड़ी है हंसीं ये।
अब सड़ने लगी है ये देखो बेचारी।
न उसको जाना न उसको मनाया।
जिसने ये सारी है दुनिया बनाई।
© abdul qadir
अंधेरी कबर अब लगती है प्यारी?
बड़े नाज़ से जिसे हमने सजाया।
वही देख लो है नहीं अब हमारी।
नशा था इसे की बड़ी है हंसीं ये।
अब सड़ने लगी है ये देखो बेचारी।
न उसको जाना न उसको मनाया।
जिसने ये सारी है दुनिया बनाई।
© abdul qadir