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भीड़
चारो तरफ भीड़ बिखरे हुए,
कोई शांत बैठा उसको देख रहा,
खुद को भीड़ में मौजूद पाकर,
फिर भी खुद को अकेला महसूस किया,
कितने कदमों की आवाजें उसने,
रोज़ वहीं बैठ सुनता रहा,
काश कोई एक फरिश्ता आता,
जो उसे सपनों की सैर करवाता,
बातें खुद से कर ली अब,
सुबह का नज़ारा हो गया,
फिर से शोर-शराबा हुआ,
मैं फिर से उसी जगह पर बैठ,
भीड़ के कदमों को सुनता रहा।
© Srishti Morya
कोई शांत बैठा उसको देख रहा,
खुद को भीड़ में मौजूद पाकर,
फिर भी खुद को अकेला महसूस किया,
कितने कदमों की आवाजें उसने,
रोज़ वहीं बैठ सुनता रहा,
काश कोई एक फरिश्ता आता,
जो उसे सपनों की सैर करवाता,
बातें खुद से कर ली अब,
सुबह का नज़ारा हो गया,
फिर से शोर-शराबा हुआ,
मैं फिर से उसी जगह पर बैठ,
भीड़ के कदमों को सुनता रहा।
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