...

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सफर सिफ़र।
सफर सिफ़र होने को है
गम कहाँ गुम होने को है
सब शिकवा गिला,
हयात जन्नत सी
धुँआ धुँआ होने को है
वक्त का यह सिलसिला है
चल रहा अनवरत
रख सब अब कगार पर
कश्ती कगार पहुँचने को है।।
हर पल जन्नत सजा रहा है
चौखट और चौराहे पर,
सिर,आँखों पर हमने रखा है
हर मन्नत चल अंगारे पर,
आसमां से शुरू है
मिल आसमां से कथा एक नई
फिर कङी कङी सजनी शुरू हुई है।।
हैरत नही,अंतः विस्मित सा है
पल पल टूटती कङी स्मित का है
ज़र सारा ज़रा ढोए बिना
उङ रहा मन हो मिलन
जो मिलन अंकुरण पर हीं तय है
यह सब सहज रहे
सहजता से भंवर यह पार हो
उस पार यह सब फिर मिले
जो घङी घङी पार इस हासिल,साथ है।।
✍️राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।













© rajiv kumar