...

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मुझको सिखाने के लिए
अक्सर लगता है मुझको, कितना नादान था मैं!
दुनिया की दुनियादारी से, कितना अंजान था मैं!
काश मैं पहले होता, मुझको सिखाने के लिए
कौन सी राह में मुड़ना है, बताने के लिए
सीखते-सीखते जब सीख पाए, तब जाना
झूठ के ख़्वाब हैं सब, ख़ुद को हंसाने के लिए
कितनी परवाह मैं, करता था इस ज़माने की!
नहीं मालूम था, हम सब हैं ज़माने के लिए
चन्द...