...

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मुझको सिखाने के लिए
अक्सर लगता है मुझको, कितना नादान था मैं!
दुनिया की दुनियादारी से, कितना अंजान था मैं!
काश मैं पहले होता, मुझको सिखाने के लिए
कौन सी राह में मुड़ना है, बताने के लिए
सीखते-सीखते जब सीख पाए, तब जाना
झूठ के ख़्वाब हैं सब, ख़ुद को हंसाने के लिए
कितनी परवाह मैं, करता था इस ज़माने की!
नहीं मालूम था, हम सब हैं ज़माने के लिए
चन्द रोटी के लिए, हाथ लिए फिरते हैं
फिर भी भूंखे हैं, दो वक्त के खाने के लिए!
पैसे इतने हैं कि, अब जेब में आते ही नहीं
घर से निकले हैं देखो, फिर भी कमाने के लिए!
ख़ुद की ख्वाइश जो पूरी हो गई, फिर और क्या?
और क्या ज़ख्म हैं, दुनियां को दिखाने के लिए?
मैं भी कहता हूं उतर आऊंगा, उड़ने तो दो
पंख क्या हैं महज़, सर्कस में दिखाने के लिए?
अब तो रस्ते भी मेरे, मेरे जैसे बिखरे हैं
रोज़ सपने नए लाता हूं, सुलाने के लिए
ज़िंदगी में करी जो गलतियां, तुम तो ना करो
रोज़ लिखता हूं, यही तुमको बताने के लिए.....
© Er. Shiv Prakash Tiwari