...

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यादें
यादों में हो तुम मेरे ये तुम्हे कैसे बताएं,
अगर चांहू भी तो इन यादों को कैसे मिटाएं।
यूं बादल की तरह घिरकर बरसती है ये,
और हम खुद को भीगने से कैसे बचाएं।
किसी यादों को अब बनाना नहीं चाहतें,
तेरी बातों को भूलना नहीं चाहते।
क्या पता न जाने कैसी याद सी है,
इस दिल में तेरी जगह खास सी है।
हम किसी को इसे दिखा नही सकते,
तेरे सिवा किसीको अपना बना नही सकते।
लोगो के भीड़ में मैं खुद को छिपाती हूं,
पर तेरी यादों से स्वयं को कैसे छिपाएं ।
यादों में हो तुम ये तुम्हे कैसे बताए।
सोचा था कि तुम समझ जाओगे
इन खामोशियों को,
पर जो शब्दो को न समझे वो खामोशियां
को भला कैसे समझ पाए।
ए तन्हाई यूं कुछ आहत सी कर गई,
कि ये यादें इक इबादत सी बन गई।
जो चलती रहो में भी राही बन जाए,
ऐसी यादों से कोई खुद को कैसे बचाए।
यादों में हो तुम ये तुम्हे कैसे बताए,
अगर चाहूं भी तो इन यादों को कैसे मिटाएं।



© Savitri..