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जो मुझे नज़र आता है वो तुम्हें नज़र आता क्यों नहीं

जो मुझे नज़र आता है वो तुम्हें नज़र आता क्यों नहीं
ये कैसा वहम है मेरा आख़िर मैं तुम्हें भाता क्यों नहीं

चाहतों की बौछार किए जा रहे हैं इस जुनून-ए-इश्क़ में
इक हमारा दिल इस अहसास में तुम्हें भिगाता क्यों नहीं

मैं अपना हाल-ए-दिल लिए अक्सर तेरे रू-ब-रू होता हूं
तेरे दिल में क्या चल रहा है, ये तू मुझे सुनाता क्यों नहीं

तुझे लगता है बिछड़ना मुक़द्दर है तो दूर रहना सही है
गर तुझे ये डर लाहक़ है तो बता मुझे डराता क्यों नहीं

ज़बरदस्ती के रिश्ते अक्सर बीच राह ही दम तोड़ देते हैं
ऐसा तुम्हें...