एकाकीपन
थमी पवन और ठहरे बादल
स्थिर लहरें कैसा विरान,
खोकर खुद को, खोकर जीवन को
खोता है सारा अभिमान,
फैले अनंत शून्य से झांकता
भावहीन मेरा एकाकीपन।
उलझा किस किस में, सुलझा नहीं
छोड़ दिया यूं बंधा हुआ
बनता बनता सब बिगड़ गया
क्या बचा था सधा हुआ,
हार थक कर क्या हुआ
बचा मेरा एकाकीपन।
राहों में जीवित कोई था नहीं
पत्थर तो फिर पत्थर थे,
तपते...
स्थिर लहरें कैसा विरान,
खोकर खुद को, खोकर जीवन को
खोता है सारा अभिमान,
फैले अनंत शून्य से झांकता
भावहीन मेरा एकाकीपन।
उलझा किस किस में, सुलझा नहीं
छोड़ दिया यूं बंधा हुआ
बनता बनता सब बिगड़ गया
क्या बचा था सधा हुआ,
हार थक कर क्या हुआ
बचा मेरा एकाकीपन।
राहों में जीवित कोई था नहीं
पत्थर तो फिर पत्थर थे,
तपते...