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आत्मिक प्रकाश
नफरतों के इस शहर में आओ दिप जलाते है।
अंधेरे में कर ऊजीयारा गीत खुशी कि गाते हैं।
ऊंच निच और भेदभाव, निश्चित जब सांसें
टोड़ेगी ,इस जर्जर बुढ़ी धमनी में रक्त नया फिर दौड़ेगी ,बुंद बुंद से भरे घड़ा लो अपना हाथ बढ़ाते हैं।
नफरतों के इस शहर में आओ दिप जलाते हैं।
स्व रचित -अभिमन्यु
अंधेरे में कर ऊजीयारा गीत खुशी कि गाते हैं।
ऊंच निच और भेदभाव, निश्चित जब सांसें
टोड़ेगी ,इस जर्जर बुढ़ी धमनी में रक्त नया फिर दौड़ेगी ,बुंद बुंद से भरे घड़ा लो अपना हाथ बढ़ाते हैं।
नफरतों के इस शहर में आओ दिप जलाते हैं।
स्व रचित -अभिमन्यु
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