...

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हिंदी
कलम मेरी पूछती है, लिखु किस मसले पे
सोच सोच के मिलते है मसले भी हज़ारो मे.
चलो आज छेड़ते है एक मसला बातों बातों मे,
खो गयी है पहचान हमारी इन बातों मे,
राष्ट्र को आगे बढाना है,
परंतु हिंदी को राष्ट्रभाषा नही बनाना है,
देश से राष्ट्र कैसे बनाओगे,
जब एक राष्ट्रभाषा नहीं लापाओगे,
एक देश है तो भाषा भी एक होना चाहिए,
क्यु हमे अपनी अलग अलग राष्ट्रभाषा चाइये,
नही देखा कोई देश हिंदुस्तां जैसा,
जहा हो युद्ध भाषाओं का ऐसा,
राष्ट्र की एकता आखंडता का है ये खंडन,
आओ करे एक राष्ट्र एक भाषा का मंथन.

हिंदी कहने को तो मातृभाषा है,
पर अनेक भाषा करना चाहती उसको साझा है,
मां के अस्तित्व का कोई साझेदार नहीं होता,
हिंदी का अपमान ऐसा सहन नही होता,
जनसंपर्क नही है संभव हिन्दी बिना,
भाषा मे भिन्नता कारण है राष्ट्र का खोना,
अपनी भाषा बोली सबको प्यारी है,
परंतु हिंदी सबसे न्यारी है,
हिंदी मे बात है क्युकी हिंदी मे जज़्बात है,
राष्ट्रभाषा से जुड़ी राष्ट्र की कायनात है .
मै नतमस्तक हु हिंदी के सम्मान में,
हिंदी ही वो भाषा है जिससेे नही कोई अज्ञान है,
सारी भाषाओं का सम्मान होना चाहिये,
राष्ट्रभाषा केवल एक होना चाहिये। -निकिता
© nikita