...

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मां
एक बार जो प्यार से मेरी माँ देखे,
अपनी ममता के आंचल में लेके।

जहां के सारे दर्द से रिहा हो जाऊ मैं,
माँ की ममता का मोल कैसे चुकाऊं मैं।

घनी छाव देती है मां,
जब दुख की धूप सताती है।

डूबती जो जीवन की कश्ती,
खेवैया बन कर आती हैं।

निज स्वार्थ रहित हर मां का जीवन,
पूरे घर की सेवा का भार उठती हैं।

जब रोते दौड़े शिशु उन तक,
हृदय से कुछ यूं लगाती हैं,
उस नन्हे शिशु में भी वो माँ
श्रेष्ठता का संचार कर जाती हैं।


- @kavyaprahar