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शेरो शायरी या कुछ और !! ✍🏻
मुझे मत बुलवाना फिर कभी
अपने मुशायरो में
मुझे नहीं रहना आता सिमट कर के
दायरों में
कोई तेरे हुस्न का मुरीद
कोई आंखो का गुलाम
मेरा कोई दर्जा ही नही
तेरे शहर के शायरों में

बहारें आने को राजी नही
फुल रो रहे है
तितलियां मर गई प्यास से
भंवरे सो रहे है
सितारे देख कर परेशान है
ये निकहत किसकी
ये बिना पानी के बादल
किसका दामन भीगो रहे है

और ये बात सहन नही हो रही
राजकुमारों से
हसीनाएं दिल लगा बैठी है
बंजारों से
जलाकर बाग खुशबू तो खत्म
कर दोगे तुम
रोकोगे कैसे इश्क की आती महक
दीवारों से

और अब " दीप" भी उतर आया है
मनमानी पर
दाग या आग कुछ तो लगेगा
कहानी पर
अब तो उठने लाजमी है सवाल भी
शायरी पे
तरस भी आता नही सुना है उसे
जवानी पर


© दीप