शेरो शायरी या कुछ और !! ✍🏻
मुझे मत बुलवाना फिर कभी
अपने मुशायरो में
मुझे नहीं रहना आता सिमट कर के
दायरों में
कोई तेरे हुस्न का मुरीद
कोई आंखो का गुलाम
मेरा कोई दर्जा ही नही
तेरे शहर के शायरों में
बहारें आने को राजी नही
फुल रो रहे है
तितलियां मर गई प्यास से
भंवरे सो रहे है ...
अपने मुशायरो में
मुझे नहीं रहना आता सिमट कर के
दायरों में
कोई तेरे हुस्न का मुरीद
कोई आंखो का गुलाम
मेरा कोई दर्जा ही नही
तेरे शहर के शायरों में
बहारें आने को राजी नही
फुल रो रहे है
तितलियां मर गई प्यास से
भंवरे सो रहे है ...