...

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मैं... तुम??
तुम तुम हो
मैं मैं हूँ
फिर..
तुम मैं
मैं तुम
क्यों बनना चाहूँ

रूप रंग ढंग
मेरा मेरे जैसा
तेरा तेरे जैसा
फिर..
तू मुझमें
मैं तुझमें
कमी
क्यों निकालना चाहूँ

बेइंतेहा
प्यार मुझको तेरे से
प्यार तुझको मेरे से
फिर भी..
तू रगड़ा करे मुझसे
मैं झगड़ा करूँ तुझसे
बिगड़ी हर बात
क्यों मैं ही बनाना चाहूँ??

आगे बढ़ती हूँ मैं
पहल करती हूँ मैं
गलतियाँ तेरी,
सर आँखों पर
कब तक मैं ही बिठाऊँ?
भूल जाया कर कभी तू भी
मनाया कर कभी तू भी
बस इतना ही तो
सिर्फ़ तुझसे तेरी होकर मैं चाहूँ..!!


© bindu