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दिवस_विशेष
आप सबके समक्ष प्रस्तुत है "दिवस विशेष" रचना 🙏
आप सभी पढ़ें और त्रुटियों से अवगत करायें 😊🙏👇👇

हतोत्साह का द्वंद्व जकड़े, आस रही है रीत।
काल चक्र में उलझा जीवन, दिखे न कोई मीत।।

अपयश बहुत मिले हैं हमको, लेकिन मिला न हर्ष।
हिय की उलझन सुलझाने में, बीत गया यह वर्ष।।

किससे जाकर कहें भला हम, अपने मन की पीर।
श्वास–श्वास में दर्द समाहित, दूर बहुत है तीर।।

अंतर्मन में घाव बहुत हैं, नयनों में है नीर।
हुई तिरोहित जाकर नभ में, मेरे उर की पीर।।

सपनों का चन्दन वन उजड़ा, बिखर गया मधुमास।
विधना तेरे खेल निराले, टूट गई हर आस।।

ऋषभ आज तक जैसे तुमने, किया नहीं प्रतिकार।
अमिय मिले या मिले हलाहल, कर लेना स्वीकार।।

– – – –ऋषभ दिव्येन्द्र

आप सभी का धन्यवाद 🙏

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