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बदलाव -अंधकार- मैं
अंदरूनी रूह में व्याप्त
अंधकार ये कौन -सा।
कुछ रहा है ये पनप
न जाने कौन सींचता।
शून्य से इस राह में
पगडंडी में ,मैं क्यूं चल रहा ।
ढूंढता हर पहर कुछ मैं
बस न बोझ बनने हूं पला।
अनदेखी -सी इस दुनिया में
बिन देखे अंधकार दिख रहा ।
उम्र मायने न रखे अगर ,मैं
बदलने कुछ रीत चला
देखे दिखे न मैं नया कुछ संग ले चला ......
© All Rights Reserved
अंधकार ये कौन -सा।
कुछ रहा है ये पनप
न जाने कौन सींचता।
शून्य से इस राह में
पगडंडी में ,मैं क्यूं चल रहा ।
ढूंढता हर पहर कुछ मैं
बस न बोझ बनने हूं पला।
अनदेखी -सी इस दुनिया में
बिन देखे अंधकार दिख रहा ।
उम्र मायने न रखे अगर ,मैं
बदलने कुछ रीत चला
देखे दिखे न मैं नया कुछ संग ले चला ......
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