...

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ishq ka krobar he...
ख़तम ही होनी है एक दिन तो करते हे ज़िन्दगी ख़सारा करके,
चंद सांसों का कारोबार है निकल जाते हैं तेरे नाम करके,

ना वफ़ा ना उम्मीद की गरज़ हे कोई तुझसे,
हम लेते जाते हैं इलज़ाम बेक़द्री का अपने ही नाम करके,

तू मजबूर था हा पता लगा हमे भी फिर,
रक़ीबों ने खूब सुनाये थे किस्से तेरे वाह वाह करके,

अब के जब टुटा तेरा भी दिल तो याद आया किस्सा मेरा भी,
हमने तो मनाये थे ग़मों के तेरे मातम भी खुशिया करके,

अब के "जावेद" उसको एहसास हुआ है एक ज़माने के बाद,कहता फिरता है अब के इश्क़ तो तूने किया था पर जैसे शिकायत करके...
© y2j