ख़ामोशी रात की
क्या रात को शहर खामोशी की चादर ओढ़ कर सोता है ?
नहीं नहीं अंधेरी गलियों में अपने हाल पर फूट फूट कर रोता है..
जो ज़ुल्म ओ सितम वो हर एक मोड़ पर सहता है ...
वो...
नहीं नहीं अंधेरी गलियों में अपने हाल पर फूट फूट कर रोता है..
जो ज़ुल्म ओ सितम वो हर एक मोड़ पर सहता है ...
वो...