...

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मेरी किताब
मैं दर्दों का भी हिसाब रखती हूं,
मिले हैं जो ज़ख्म तुझसे
उन ज़ख्मों को भी हरा रखती हूं,
ज़िंदगी, गर खुशी है तो
उन खुशियों का भी मैं किताब रखती हूं।

ये सबको क्या हुआ है
ये किसकी आवाज़ है, गली में!
कितना हुआ आज़ ये शोर है
निकले बाहर तो चर्चाओं से
सबकी आवाज़ गर्म है,
दो दिल मिल रहे थे चुपके - चुपके
उसी बात को लेकर
आज़ मेरी गली में इतना शोर है।

मैं तो हैरत में हूं
चाहते क्या लोग सभी
छोटी सी बातों का घटा इतना घनघोर है
मुहब्बत वाले ऐसे ही छुप के मिलते
वो कहां करते इतना शोर है
निक्कमें हो सभी के सभी
इतनी...