...

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ख्याल... यूँ ही
आज शाम बैठे बैठे
यूँ ही ख्याल पकने लगा
मन थक गया है या
शरीर थकने लगा

जिम्मेदारियों का बोझ
कल आज कल
रोज़ रोज़
क्यों आक्रोश दहकने लगा
यही सोच बैठे बैठे
यूँ ही ख्याल पकने लगा

सब तो हैं अपने
प्रत्यक्ष या हो सपने
उनकी ही खुशी में
ये दिल महकने लगा
फिर क्यों कुछ अलग सोच, आज
यूँ ही ख्याल पकने लगा

उम्र बीत रही
वक़्त के पीछे भागते
सब ही तो हैं साथ में, फिर
ख़ुद के लिए ही वक़्त सरकने लगा
समय कहाँ गुम रहा सालों
यूँ ही ख्याल पकने लगा

आईना देखा नहीं ठीक से
एक अरसा हुआ
ध्यान देखा जब आज
एक आधा सफ़ेद बाल चमकने लगा
ख़ुद को भुलाकर संभाला सब कुछ
अब बारी आई मेरी तो
ज़रा ज़रा उम्र झलकने लगा
ख़ुद को देख
आज शाम बैठे बैठे
यूँ ही ख्याल पकने लगा..!!


© bindu