...

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एक नई भोर ..

क्षण भर को दिखे रवी
फिर बादलों ने छुपा लिया
दूर क्षितिज पर बिखर रही
हल्की हल्की सी लालिमा

खामोशियों से हौले - हौले
अब उठ रही कुछ ध्वनि
लो ! और एक निशा ढली
एक नई भोर अवतरित होने चली !

स्वरचित © ओम'साई'

© aum 'sai'