...

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स्वीकार
#स्वीकार
अगर-मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही कहाँ जुड़ते हैं रिश्ते?
कुछ तो मन में पिघला होगा,
दिल का दरवाज़ा खुला होगा।

यूँ ही नहीं कोई समर्पण करता,
कुछ तो अंतर में झुका होगा।
शब्द बिन भी जो कहा सुना,
दिल ने दिल से कुछ कहा होगा।

कभी एहसास, कभी स्नेह का धागा,
रिश्तों का मर्म वही छुआ होगा।
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा,
मन का कोई कोना सुलगा होगा।

अगर-मगर के बीच में ही सही,
कुछ तो अनकहा जुड़ा होगा,
ऐसे ही नहीं बंधते दिल के धागे,
स्वीकार में कुछ तो कहा होगा।

रिश्ते यूँ ही नहीं बनते सच्चे,
कुछ तो भीतर से माना होगा।
समर्पण और विश्वास की राह में,
उसने कुछ न कुछ तो किया होगा।

_Kajal