...

1 views

नज़्म
उदासी जब मुहब्बत का मुक़द्दर बनके उभरे
तुम्हें पाने की हर तदबीर जब हो जाये बेकार
मेरी फ़रियाद भी लगने लगे जब बेसदा सी
समझना मैं तुम्हारे जिस्म में मरने लगा हूँ

तग़ाफ़ुल हो तुम्हें जब नाम भी लेने से मेरा
मुझे जब सोचकर होने लगे तल्ख़ी ज़बाँ पर
मेरी आवाज़ तक जब तुमको छूना बंद कर दे
समझना मैं तुम्हारे जिस्म में मरने लगा हूँ

मेरी यादों से भी दिल ऊब जाए जब तुम्हारा
मेरी आहें भी जब तुमको जगा पाये न हमदम
मेरी हर नज़्म यूँ ही बे-असर होने लगे जब
समझना मैं तुम्हारे जिस्म में मरने लगा हूँ

© All Rights Reserved