नज़्म
उदासी जब मुहब्बत का मुक़द्दर बनके उभरे
तुम्हें पाने की हर तदबीर जब हो जाये बेकार
मेरी फ़रियाद भी लगने लगे जब बेसदा सी
समझना मैं तुम्हारे जिस्म में मरने लगा हूँ
तग़ाफ़ुल हो तुम्हें जब नाम भी ...
तुम्हें पाने की हर तदबीर जब हो जाये बेकार
मेरी फ़रियाद भी लगने लगे जब बेसदा सी
समझना मैं तुम्हारे जिस्म में मरने लगा हूँ
तग़ाफ़ुल हो तुम्हें जब नाम भी ...