चिट्ठी
संसार की सारी डाकखाने प्रेम से चलती
और कचहरी नफरत से।
डाकखाने आजकल कम होते जा रहे
और कचहरी ज्यादा इसमें कोई हैरत की बात नही है।।
हम दोनों रोज कम से कम एक
चिट्ठी एक दूसरे को लिख ही सकते हैं।
हो सके तो कभी तुम कोई किताब भी
भेज दिया करना।।
और कभी कभी मेरे यादो को वी लिखना
जिससे मेरे मन का भर्म भी दूर रहे।
मुझे तुम्हारी चिट्ठी पढ़ के ये लगता रहे
की तुम आज भी मुझे उतना ही प्यार करते।।
© priya
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और कचहरी नफरत से।
डाकखाने आजकल कम होते जा रहे
और कचहरी ज्यादा इसमें कोई हैरत की बात नही है।।
हम दोनों रोज कम से कम एक
चिट्ठी एक दूसरे को लिख ही सकते हैं।
हो सके तो कभी तुम कोई किताब भी
भेज दिया करना।।
और कभी कभी मेरे यादो को वी लिखना
जिससे मेरे मन का भर्म भी दूर रहे।
मुझे तुम्हारी चिट्ठी पढ़ के ये लगता रहे
की तुम आज भी मुझे उतना ही प्यार करते।।
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