...

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याद है मुझे
वो कृष्ण आज महाभारत में
चक्र उठाए खड़ा है
जो कभी मुरली का
सुर मधुर सुनाया करता था
वो कृष्ण नहीं कान्हा याद है मुझे।

वो रणछोड़ आज द्वारका का
स्वामी बन चुका है
जो माखनचोर बनके दही की
हांडियां फोड़ा करता था
वो रणछोड़ नहीं माखनचोर याद है मुझे।

वो नृप द्वारका का आज
सब वैभव पा चुका है
जो मित्र सुदामा का बन
उसके संग खेला करता था
वो नृप नहीं मित्र याद है मुझे।

वो कंसकाल आज अपने सगे
मामा का वध कर आया
जो गोपाल कभी पराई गोपियों संग
रास रचाया करता था
वो कंसकाल नहीं गोपाल याद है मुझे।

वो नटवर आज युद्ध में उंगली पर
सुदर्शन चक्र उठाए खड़ा है
जो नटनागर कभी अपनी उंगली पर
गोवर्धन गिरी उठाया करता था
वो नटवर नहीं नटनागर याद है मुझे।

वो केशव आज समुद्र का
खारा पानी पीने लगा है
जो माधव कभी यमुना में
क्रीड़ा किया करता था
वो केशव नहीं माधव याद है राधा को।

हां कृष्ण, तुम द्वारका भी चले गए मगर…
इस राधा को गोकुल का अपना कान्हा ही याद है।


© Utkarsh Ahuja