...

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तुम हो
जुदा होकर भी क्यूं तुम जुदा नहीं हो,
मेरी सोच के हर दायरे में भी तुम..
सुबह में तुम हो, शाम में तुम..
नींद में तुम हो, ख़्वाब में तुम..
आरज़ू में तुम हो, जुस्तजू में तुम..
सांस में तुम हो, आवाज़ में तुम..
ज़ख़्म भी तुम हो, मरहम भी तुम..
सहरा भी तुम हो, दरिया भी तुम..
अंधेरे में तुम हो, रौशनी भी तुम..
धड़कन में तुम हो, रगों में भी तुम..
तुमसे जुदा होना मुमकिन ही नहीं
मेरी रूह में भी तुम हो.. सिर्फ तुम हो।


© sheenam

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