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स्वतंत्रता सेनानी
*_बिछती हुई विसातों का रुख मोड़ देते हैं_*
*_दुश्मन के छक्के छुड़ा हम सब तोड़ देते हैं_*
*_यूं नहीं कहते मां भारती के लाल हमको_*
*_दहकती दीवारों को भी हम फोड़ देते हैं_*

बढ़ रहा तूफ़ान था , देश रक्त प्रधान था
फिरंगी यूं बढ़ता गया , कुकृत्य वो रचता गया
हो रहा पराधीन था , आर्याव्रत अब क्षीण था
फिर भी पुष्प कुछ बचे रहे , अवसानों से भिड़े रहे

कट रहे थे मर रहे थे , फिर भी न पीछे हट रहे थे
उम्मीदों की डोर पर , अपने ही उन्हें ठग रहे थे
पड़ रही पैरों में बेडी , फिर भी वो न डर रहे थे
लड़ते लड़ते मर रहे थे , फिर भी वो अब भिड़ रहे थे

अब शासन निरंकुश हुआ, 1857 पर थोड़ा अंकुश हुआ
जगी उम्मीदों का फिर से , वध ये कालपोषित हुआ
फिर भी नींव अब हिलने लगी , धरनी धरा ढुलने लगी
कुछ पुष्प अंकित हुए ,...